भारतीय परंपरा में महापुरुषों और देवताओं के जन्म-दिवस के लिए ‘जयन्ती’ शब्द का व्यापक प्रयोग होता है। समय-समय पर यह भ्रम भी फैलाया गया कि ‘जयन्ती’ शब्द केवल उन महापुरुषों के लिए प्रयोग होना चाहिए जो दिवंगत हो चुके हों। परन्तु संस्कृत–व्याकरण, पुराण-साहित्य, दैव-परंपरा और ज्योतिष—सभी मिलकर इस धारणा को पूरी तरह निराधार सिद्ध करते हैं।
वास्तव में “जयन्ती” एक अत्यन्त सभ्य, शास्त्रीय और शुभ शब्द है, जिसका सम्बन्ध जीवित या दिवंगत स्थिति से नहीं, बल्कि विजयप्रद, पुण्यप्रद और दिव्य—प्राकट्य–क्षण से है।
और इसी अर्थ में—हनुमानजी की जन्म-वेला के लिए “हनुमान-जयन्ती” शब्द सबसे अधिक उपयुक्त, सिद्ध और सार्थक है।
1. व्याकरण और व्युत्पत्ति : ‘जयन्ती’ का शाब्दिक अर्थ
‘जयन्ती’ शब्द की व्युत्पत्ति:
जयतीति । जि + “तृभूवहिवसीति” (उणादि 3।128) इति झच्।
अर्थात् वह वेला—
- जो विजय प्रदान करे,
- पुण्य का संवर्धन करे,
- और किसी दिव्य व्यक्तित्व के प्राकट्य से जगत को कल्याणमय बनाए।
इस प्रकार ‘जयन्ती’ विजय-उद्भवक कालांश का नाम है।
यह तथ्य ही सिद्ध करता है कि जयन्ती का “मृत/जीवित अवस्था” से कोई संबंध नहीं।
2. पुराणों में जयन्ती का अर्थ
पुराण-वचन कहता है:
“जयं पुण्यञ्च कुरुते जयन्तीमिति तां विदुः॥”
अर्थात्—
जो समय विजय और पुण्य दोनों को जन्म दे, वही जयन्ती कहलाता है।
इससे स्पष्ट है कि जयन्ती केवल जन्म-दिन नहीं, बल्कि पुण्य, विजय और दिव्यता से युक्त क्षण का नाम है।
3. ‘जयन्त’ और ‘जयन्ती’—विजय का पुरुष और विजय की वेला
शास्त्रीय व्याख्या:
“अतिशयेनारीन् जयते जयहेतुरिति वा जयन्तः।”
जो अत्यधिक बलवान शत्रुओं को भी परास्त कर दे—वह जयन्त कहलाता है।
इसी ‘जयन्त’ पुरुष के प्रकट होने वाले क्षण का नाम—जयन्ती।
पुराणों में विष्णु, शिव, उपेन्द्र और देवी—सभी के संदर्भ में जयन्ती का प्रयोग मिलता है:
- विष्णु का नाम : जयन्त — “अर्को वाजसनः… जयन्तः सर्वविज्जयी।”
- शिव का नाम : जयन्त — “सावित्रश्च जयन्तश्च…” (मात्स्यपुराण 5.30)
- उपेन्द्र (वामन) का नाम : जयन्त — “जयन्तो वासुदेवांश…”
- देवी का नाम : जयन्ती — “जयन्ती मङ्गला…”
अतः जयन्ती एक सर्वमान्य देव-वाचक, विजयी जन्म-काल का पद है।
4. कृष्ण-जन्मवेला को भी ‘जयन्ती’ कहा गया है
शास्त्रों में स्वयं श्रीकृष्ण की जन्मवेला को कहा गया—
“जयन्ती नाम सा प्रोक्ता सर्वपापप्रणाशिनी।”
यह प्रमाण दिखाता है कि जब किसी अवतार की जन्म-वेला दैवी योग से संपन्न होती है, तब उसे “जयन्ती” कहा जाता है।
5. ज्योतिषीय प्रमाण : ‘जयन्त योग’
ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार:
**“यत्र स्वोच्चगतश्चन्द्रो लग्नादेकादशे स्थितः ।
जयन्तो नाम योगोऽयं शत्रुपक्षविनाशकृत् ॥”**
उच्च ग्रहों के विशेष संयोग से बनने वाला यह योग वनाशक, विजयकारी और दैवी प्राकट्य के अनुकूल माना गया है।
अनेक अवतारों के जन्मकाल में यह योग वर्णित होने से उनका जन्म-दिवस ‘जयन्ती’ कहा गया।
6. जयन्ती और हनुमान : तात्त्विक, शास्त्रीय और भावनात्मक सम्बन्ध
अब तक ‘जयन्ती’ की जो परिभाषा और शास्त्रीय सिद्धान्त सामने आए—
उन सभी को यदि हनुमानजी पर लागू करें, तो स्पष्ट हो जाता है कि—
हनुमान-जन्म के लिए ‘जयन्ती’ शब्द ही सर्वाधिक उचित, सिद्ध और प्रमाणित है।
क्यों?
(a) हनुमानजी स्वयं ‘जयन्तपुरुष’ हैं
- समुद्र-लाँघन
- लंका-विजय
- राक्षस-विनाश
- संजीवनी-प्राप्ति
- रामकार्य-सिद्धि
ये सभी अतिशय विजय के कार्य हैं—
और शास्त्र कहता है “अतिशयेनारीन् जयते—सः जयन्तः।”
अतः जिस पुरुष का सम्पूर्ण जीवन “विजय” है, उसके जन्म-क्षण का नाम जयन्ती ही होना चाहिए।
(b) हनुमानजी का प्राकट्य = जगत में विजय-शक्ति का प्राकट्य
जयन्ती शब्द की व्युत्पत्ति “जयतीति” अर्थात् “विजय प्रदान करने वाली वेला।”
हनुमान-जन्म का परिणाम:
- रामकथा सम्भव हुई
- धर्म की विजय सम्भव हुई
- जीवों को भय से मुक्ति मिली
- रामनाम की शक्ति पृथ्वी पर प्रकट हुई
उनके प्रकट होते ही धर्म-पक्ष की विजय का युग प्रारम्भ हुआ।
यही जयन्ती का शाब्दिक अर्थ है।
(c) हनुमान : विष्णु–भक्ति और शिवांश—दोनों ‘जयोन्मुख’ तत्त्वों का समन्वय
पुराण दिखाते हैं—
- विष्णु का नाम भी जयन्त
- शिव का नाम भी जयन्त
- देवी का नाम जयन्ती
- वामन का नाम जयन्त
हनुमानजी—शिवांश होते हुए भी विष्णु-भक्त हैं।
अतः वे “जय” के दोनों तत्त्व—शौर्य और भक्ति—का साक्षात् संगम हैं।
इसलिए उनके प्राकट्य के दिव्य क्षण का नाम जयन्ती ही अर्थपूर्ण है।
(d) हनुमान-जन्म : पाप-प्रणाशक और शत्रु-विनाशक वेला
कृष्ण-जयन्ती की भाँति—
- हनुमानजी का जन्म भी भय, बाधाओं और पापों के नाश का प्रतीक है।
- वे जन्म से ही “नित्यमुक्त, शुभ और मंगलमय” तत्त्व हैं।
- उनका प्राकट्य स्वयं में पवित्रता, बल, भक्ति और विजय का उदय है।
अतः वह वेला “जयन्ती” कहलाती है—उत्सव मात्र नहीं।
(e) ‘जन्मोत्सव’ केवल उत्सव है; पर ‘जयन्ती’ दिव्य-प्राकट्य का नाम है
‘जन्मोत्सव’ = सामाजिक, सांस्कृतिक उत्सव।
‘जयन्ती’ = दैवी शक्ति के प्राकट्य का विजयी क्षण।
हनुमान-जन्म केवल जन्म नहीं—
यह वह क्षण है जब—
- सेवा का अवतरण हुआ
- पराक्रम का अवतरण हुआ
- बुद्धि और विवेक का अवतरण हुआ
- भक्ति का सर्वोच्च आदर्श अवतरित हुआ
- रामकार्य के लिए अनिवार्य दैवी शक्ति प्रकट हुई
अतः “हनुमान-जयन्ती” शब्द अर्थ, तत्त्व और शास्त्र—तीनों से सिद्ध है।
7. निष्कर्ष : क्यों ‘हनुमान-जयन्ती’ ही शास्त्रीय प्रयोग है
सभी प्रमाण एक साथ मिलकर यह दिखाते हैं—
✓ ‘जयन्ती’ विजयप्रद, पुण्यप्रद, दैवी जन्म-क्षण का नाम है।
✓ इसका ‘जीवित/मृत’ से कोई सम्बन्ध नहीं।
✓ शास्त्र देवताओं, अवतारों, विजयी पुरुषों के जन्म पर ‘जयन्ती’ शब्द का प्रयोग करते हैं।
✓ हनुमानजी का जन्म-वेला विश्व में ‘विजय, भक्ति, सेवा और धर्म-उत्थान’ का आरम्भ है।
इसलिए—
‘हनुमान-जयन्ती’ ही पूर्णतः शास्त्रीय, उपयुक्त, प्रमाणिक और तात्त्विक नाम है— ‘हनुमान-जन्मोत्सव’ नहीं।
No comments:
Post a Comment